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ऐन फ्रैंक के डायरी के पन्ने ॅ

बुधवार, 28 जनवरी. मेरी प्यारी किट्टी. 1944

तुम्हारी ऐन 

आज सुबह मैं सोच रही थी कि क्या तुमने अपने आपको कभी गाय समझा है जिसे हर दिन मेरी बासी खबरें बार-बार चबानी पड़ती हैं। इनकी इतनी अधिक जुगाली कि तुम्हें उबासी आ जाए और तुम मन ही मन कामना करो कि ऐन कुछ नए समाचार दे। सॉरी, तुम्हें ये नाली के सड़ते पानी की तरह नीरस लगता होगा। लेकिन जरा मेरी हालत की कल्पना करो जिसे रोज-रोज यही सुनना पड़ता है। अगर खाने के वक्त बातचीत राजनीति या अच्छे खाने के बारे में नहीं हो रही होती तो मम्मी या मिसेज वान दान अपने बचपन की उन कहानियों को लेकर बैठ जाती हैं जो हम हज़ार बार सुन चुके हैं या फिर डसेल शुरू हो जाते हैं खूबसूरत रेस के घोड़े, उनकी चार्लोट का महँगा वॉर्डरोब, लीक करती नावें, चार बरस की उम्र में तैर सकने वाले बच्चे, दर्द करती माँसपेशियाँ और डरे हुए मरीज ये सब किस्से। इन सारी बातों का निचोड़ ये है: जब भी हम आठों में से कोई भी अपना मुँह खोलता है, बाकी सातों उसके लिए कहानी पूरी कर सकते हैं। किसी भी लतीफ़े को सुनने से पहले ही हमें उसकी पंच लाइन पता होती है। नतीजा यह होता है कि लतीफ़ा सुनाने वाले को अकेले हँसना पड़ता है। अलग-अलग ग्वाले, राशनवाले, कसाई जो घरों की इन दो भूतपूर्व मालकिनों के संपर्क में आए, इतनी बार उनके चरित्र-चित्रण हो चुके हैं कि हमारी कल्पना शक्ति में उनमें जोड़ने के लिए कुछ भी नहीं बचा। एनेक्सी की यह हालत है कि यहाँ नया या ताज़ा सुनने सुनाने को कुछ भी नहीं बचा है।

फिर भी, इन सारी चीजों में ताज़ा सुनने-सुनाने को कुछ भी नहीं बचा है। लोगों को नमक मिर्च लगाकर वह सब कुछ दोहराने की आदत न होती जो मिस्टर क्लीमेन, जॉन, मिएप पहले ही बता चुके होते हैं। कई बार मैं मेज़ के नीचे अपने आपको खुद चिकोटी काट कर रोके रहती हूँ कि कहीं किसी को टोक न दूँ। छोटे बच्चे, खासकर ऐन कभी भी किसी बड़े को टोकने, सही लाइन पर लाने की हिमाकत न करें। भले ही उनकी गाड़ी पटरी से उतरी जा रही हो या उनकी कल्पनाशक्ति का दिवाला पिट चुका हो।



जॉन और मिस्टर क्लीमेन को अज्ञातवास में छुपे या भूमिगत हो गए लोगों के बारे में बात करना अच्छा लगता है। वे जानते हैं कि हम अपने जैसी हालत में जी रहे लोगों की बातें जानने के इच्छुक हैं। हमें उन सबकी तकलीफ़ों से हमदर्दी है जो गिरफ्तार हो गए हैं और उन लोगों की खुशी में हमारी खुशी है जो कैद से आजाद कर दिए गए हैं। भूमिगत होना और अज्ञातवास में चले जाना तो अब आम बात हो गई है। हाँ कई प्रतिरोधी दल भी हैं, जैसे फ्री नीदरलैंड्स जो नकली पहचानपत्र बनाते हैं, अज्ञातवास में छुपे लोगों को वित्तीय सहायता देते हैं, युवा ईसाइयों के लिए काम तलाशते हैं। कितनी हैरानी की बात है कि ये लोग अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरों की मदद के लिए कितना काम कर रहे हैं। इसका सबसे बढ़िया उदाहरण हमारी मदद करने वालों का है, जो हमारी आज तक मदद करते आए हैं और उम्मीद तो यही है कि वे हमें सुरक्षित किनारे तक ले आएँगे। इसका कारण यह है कि अगर वे ऐसा नहीं करते तो उनकी किस्मत भी हमारी जैसी हो जाएगी। उन्होंने कभी नहीं कहा कि हम उनके लिए मुसीबत हैं। वे रोजाना ऊपर आते हैं, पुरुषों से कारोबार और राजनीति की बात करते हैं, महिलाओं से खाने और युद्ध के समय की मुश्किलों की बात करते हैं, बच्चों से किताबों और अखबारों की बात करते हैं। वे हमेशा खुशदिल दिखने की कोशिश करते हैं, जन्मदिनों और दूसरे मौकों पर फूल और उपहार लाते हैं। हमेशा हर संभव मदद करते हैं। हमें ये बात कभी भी नहीं भूलनी चाहिए। ऐसे में जब दूसरे लोग जर्मनों के खिलाफ़ युद्ध में बहादुरी दिखा रहे हैं, हमारे

मददगार रोजाना अपनी बेहतरीन भावनाओं और प्यार से हमारा दिल जीत रहे हैं। अजीब-अजीब कहानियाँ चल रही हैं। उनमें काफ़ी सच भी हैं। अभी मिस्टर क्लीमेन गेल्डरलैंड में भूमिगत हो चुके आदमियों और पुलिसवालों के बीच हुए फुटबाल मैच का जिक्र कर रहे थे, हिल्वरसम में नए राशनकार्ड जारी किए गए। (ऐसे लोगों को, जो अज्ञातवास में रह रहे हैं, राशन खरीदने की सुविधा हो सके ) अगर राशनकार्ड न हो तो एक कार्ड के


लिए 60 गिल्डर देने पड़ते हैं। जिले में अज्ञातवास में रह रहे सभी लोगों से रजिस्ट्रार ने आग्रह किया कि वे फलाँ दिन एक अलग मेज़ पर आकर अपने कार्ड ले जाएँ।

इस सबके साथ ये भी खयाल रखना पड़ता है कि इस तरह की चालाकियों की जर्मनों को हवा भी न लगे।

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